December 2018
अक्षर पर्व ( अंक 231 )
ख़बरों की दुनिया में
ख़बरों की दुनिया में
कोई भी ख़बर
महज एक ख़बर होती है
चाहे जैसी भी हो
वह ख़बर
ख़बरों की दुनिया में
हर ख़बर एक जिंस है
बाज़ार की मांग के अनुसार
सजाई जाती है यहाँ
हर ख़बर
ख़बरों की दुनिया में
कोई मोल नहीं संवेदना का
तुम्हारी पीड़ाओं-यातनाओं की कथा
बना दी जाती है सनसनीख़ेज
जिसे ले-ले कर चटखारे
सुनते-सुनाते हैं लोग
और भूल जाते हैं फिर
ख़बरों की दुनिया में
छाये रहते भेडिय़े
छायी रहती हैं
खू़बसूरत जिस्मों की मलिकाएँ
छाये रहते हैं
सपनों की दुनिया के नकली राजकुमार
ताकि उन्हें देखो
और भूल जाओ अपनी पीड़ा
और भूल जाओ उस इरादे को भी
जो बनता जा रहा था ख़तरनाक-
उनके तिलस्म के लिए!
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ये कैसी चली है हवा
दिख रहा जो दृश्य सामने
नहीं है वह ठीक वैसा ही
जैसा कि पड़ रहा दिखाई
प्रायोजित है यह दृश्य
सजाया गया है आकर्षक अंदाज में ऐसा कि
लगता सबको मोहक-मनभावन
जमा हो रही भीड़
बेतहाशा दौड़ रहे
उधर ही लोग-
इस चकाचौंध के पीछे
छिप रहीं वे तमाम चीजें
जिनसे रिश्ता था हमारा
बहुत गहरा।
ये कैसी चली है हवा इन दिनों कि
जिनकी जड़ें नहीं, पनप रहे
और
जिनकी धॅंसी थी बहुत गहरी,
उखड़ रहे!
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रातभर
माँ रातभर कराहती रही
पत्नी रातभर कुढ़ती-कुनमुनाती रही
बेखबर सोते रहे बच्चे
मैं रातभर जागता रहा।
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भीड़
एकान्त का निर्जन द्वीप
मन को मेरे भाता है
भीड़ तो दरिया है, उफनती
वज़ूद डूब जाता है।