January 2015
अक्षरपर्व ( अंक 184 )
विजय राठौर
गट्टानी कन्या उ.मा. शाला के सामने,
जांजगीर, जिला- जांजगीर-चांपा (छ.ग.)
मो. 98261-15660
कितना कोसें आज समय को
इसी समय में हमको जीना
अमृत विष जो भी है पीना
माना कुछ लोगों ने लूटा अपने घर को
और थपथपा रहे पीठ अपने ही हाथों
पर उनके चेहरे की कालिख बता रही है
उनके पापों की गठरी भरने वाली है
वे डूबेंगे निंदा के अथाह सागर में
जहां भूख से मर जाएंगे
क्या वे वहां नोट खाएंगे
नहीं
उन्हें भी अपने जैसे मरना खपना
उनकी आंखों में भी आंसू के झरने हैं
और उन्हें भी आम आदमी के जैसे ही
दुख-सुख के सागर में ही पल-पल तरने हैं
उन्हें यह समय नहीं माफ करने वाला है
जिनके जीवन में सब कुछ काला-काला है।